नशे के खिलाफ जंग लड़ रहा मानस और शहर की खूबसूरती को चार चांद लगा रही परी 

नशे के खिलाफ जंग लड़ रहा मानस और शहर की खूबसूरती को चार चांद लगा रही परी 

मन की बात  में प्रधानमंत्री मोदी ने किया इस बात का जिक्र  

नई दिल्ली। देश के अधिकांश शहरों और कस्बों में दीवारों पर बनी सुंदर सी पेंटिंग अक्सर दिखाई देती है। उन्हें देखकर लगता है कि किसी नामचीन पेंटर ने इसे बनाया होगा। जबकि हकीकत ये है कि दीवारों को खूबसूरती के साथ सजाने-संवारने वाले प्रोजेक्ट परी से जुड़े लोग होते हैं। इनके हुनर का जिक्र आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मन की बात में भी किया है। पीएम ने इस प्रोजेक्ट के बारे में बात तरते हुए मोदी न बताया कि प्रोजेक्ट परी, पब्लिक आर्ट  को लोकप्रिय बनाने के लिए उभरते कलाकारों को एक मंच पर लाने का बड़ा माध्यम बन रहा है। आप देखते होंगे, सड़कों के किनारे, दीवारों पर, अंडरपास में बहुत ही सुंदर पेंटिंग्स बनी हुई दिखती हैं। ये पेंटिंग्स और ये कलाकृतियां यही कलाकार बनाते हैं जो परी से जुड़े हैं। इससे जहां हमारे सार्वजनिक स्थानों की सुंदरता बढ़ती है वहीं हमारी संस्कृति को और ज्यादा लोकप्रिय बनाने में भी मदद मिलती है।
ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई में लाया गया मानस बहुत बड़ा कदम है। कुछ दिन पहले ही मानस की हेल्पलाइन और पोर्टल को लांच किया गया है। सरकार ने एक टोल फ्री नंबर 1933 जारी किया है। इस पर कॉल करके कोई भी जरूरी सलाह ले सकता है या फिर रिहैबिलेशन से जुड़ी जानकारी ले सकता है। अगर किसी के पास ड्रग्स से जुड़ी कोई दूसरी जानकारी भी है, तो वो इसी नंबर पर कॉल करके एनसीबी के साथ साझा भी कर सकते हैं। मानस के साथ साझा की गई हर जानकारी गोपनीय रखी जाती है। भारत को ड्रग्स फ्री बनाने में जुटे सभी लोगों से, सभी परिवारों से, सभी संस्थाओं से मेरा आग्रह है कि मानस हेल्पलाइन का भरपूर उपयोग करें।
पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में कहा कि रंगों ने हरियाणा के रोहतक जिले की ढ़ाई-सौ से ज्यादा महिलाओं के जीवन में समृद्धि के रंग भर दिए हैं। हथकरघा उद्योग से जुड़ी ये महिलाएं पहले छोटी-छोटी दुकानें और छोटे-मोटे काम कर गुजारा करती थीं। इन्होंने उन्नति सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़कर ब्लॉक प्रिटिंग और रंगाई में ट्रेनिंग हासिल की। कपड़ों पर रंगों का जादू बिखेरने वाली ये महिलाएं आज लाखों रुपए कमा रही हैं। 7 अगस्त को हम नेशनल हैंडलूम्स डे मनाएंगे। आज कल, जिस तरह हैंडलूम उत्पादों ने लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई है, वो वाकई बहुत सफल है, जबरदस्त है। अब तो कई निजी कंपनियां भी एआई के माध्यम से हथकरगा उत्पाद और सस्टेनेबल फैशन को बढ़ावा दे रही हैं। खादी ग्रामोद्योग का कारोबार पहली बार 1.5 लाख करोड़ रुपए के पार पहुंच गया है और खादी की बिक्री 400% बढ़ी है। खादी की, हैंडलूम की, ये बढ़ती हुई बिक्री बड़ी संख्या में रोजगार के नए अवसर भी बना रही है। इस इंडस्ट्री से सबसे ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं, तो सबसे ज्यादा फायदा भी उन्हीं को हो रहा है। मोदी ने आगे कहा कि आपने अब तक खादी के वस्त्र नहीं खरीदे, तो इस साल से शुरू कर लें। अगस्त का महीना आ ही गया है ये आजादी मिलने का महीना है, क्रांति का महीना है। इससे बढ़िया अवसर और क्या होगा, खादी खरीदने के लिए। पीएम मोदी ने अपने 112 वें और तीसरे कार्यकाल की दूसरी मन की बात में असम के चराईदेउ मैदाम की भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि असम के चराईदेउ मैदाम को यूनेस्को वल्र्ड हेरिटेज में शामिल किया जा रहा है। इस लिस्ट में यह भारत की 43वीं, लेकिन नॉर्थईस्ट की पहली साइट होगी। चराईदेउ अहोम राजवंश की पहली राजधानी थी। अहोम राजवंश के लोग अपने पूर्वजों के शव और उनकी कीमती चीजों को पारंपरिक रूप से मैदाम में रखते थे। मोदी ने आगे कहा कि अगर आपने इसे अबतक नहीं सुना था तब यूनेस्को में शामिल होने के बाद इसे आप अब बार-बार सुनेंगे। 13वीं शताब्दी के शुरू होकर अहोम साम्राज्य 19वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला। इतने लंबे कालखंड तक एक साम्राज्य का बने रहना बहुत बड़ी बात है। 

पीएम ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से तो पूरे देश में हर घर तिरंगा अभियान के लिए सबका जोश हाई रहता है। गरीब हो, अमीर हो, छोटा घर हो, बड़ा घर हो, हर कोई तिरंगा लहराकर गर्व का अनुभव करता है। तिरंगे के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने का क्रेज भी दिखता है। पीएम मोदी ने कहा कि भारत में तो  बाघ, हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। हम सब बाघों से जुड़े किस्से-कहानियां सुनते हुए ही बड़े हुए हैं। जंगल के आस-पास के गांव में तो हर किसी को पता होता है कि बाघ के साथ तालमेल बिठाकर कैसे रहना है। हमारे देश में ऐसे कई गांव हैं, जहां इंसान और बाघ के बीच कभी टकराव की स्थिति नहीं आती, लेकिन जहां ऐसी स्थिति आती है, वहां भी बाघों के संरक्षण के लिए अभूतपूर्व प्रयास हो रहे हैं। मोदी ने कहा कि जन-भागीदारी का ऐसा ही एक प्रयास है कुल्हाड़ी बंद पंचायत। राजस्थान के रणथंभौर से शुरू हुआ कुल्हाड़ी बंद पंचायत अभियान बहुत दिलचस्प है। स्थानीय समुदायों ने स्वयं इस बात की शपथ ली है कि जंगल में कुल्हाड़ी के साथ नहीं जाएंगे और पेड़ नहीं काटेंगे। इस एक फैसले से यहा के जंगल, एक बार फिर से हरे-भरे हो रहे हैं, और बाघों के लिए बेहतर वातावरण तैयार हो रहा है।

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