छत्तीसगढ़-बलौदा बाजार का मल्लीन नाला बना टापू, दुल्हा-दुल्हन को गोद में उठाकर कराया पार

छत्तीसगढ़-बलौदा बाजार का मल्लीन नाला बना टापू, दुल्हा-दुल्हन को गोद में उठाकर कराया पार

बलौदा बाजार.

बलौदा बाजार जिले के पलारी ब्लॉक मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर ग्राम मल्लीन के नाला पारा के लिए बरसात के दो महीने किसी दुःस्वप्न के समान आते हैं जब एक पूरा मुहल्ला सारी दुनिया के साथ अपने ही गाँव से कट जाता है। कुल 204 घरों में बसे 1347 निवासियों वाले ग्राम पंचायत  मल्लीन को दो भागों में बाँटता है मल्लीन नाला। मुख्य भाग में स्कूल, आंगनबाड़ी, राशन भंडार, आवश्यक सामानों की दुकान और सामुदायिक भवन जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। दूसरा भाग नाला पारा इन सारी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।

इस भाग के 20 घरों में बसने वाले 125 लोगों के लिए बरसात के दो महीने कई तरह की समस्याओं का सबब बनकर आते हैं, जब थोड़ी सी बरसात में ही नाले का चढ़ा पानी नाला पारा को मुख्य भाग से पूरी तरह पृथक कर देता है। मुख्य बस्ती से कटने के बाद सबसे बड़ी दिक्कत 40 स्कूली बच्चों को शाला तक पहुँचाने में परेशानी आती है। जब पानी घुटनों तक हो तो किसी तरह नाले में बने चैक डेम या पालक के कंधों में बैठ बच्चे नाला पार कर लेते हैं, लेकिन उससे ज्यादा होने पर बच्चों का स्कूल जाना बंद हो जाता है। जिसके कारण विद्यार्थी शैक्षणिक और बौद्धिक स्तर पर पिछड़ते जाते हैं। यही हाल आंगनबाड़ी केंद्र जाने वाले 8 छोटे बच्चों का है। न बच्चे जा पाते हैं और न ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आ पाती हैं। परिणामस्वरूप पोषण आहार और टीकाकरण जैसे शासन के कार्यक्रम यहाँ तक पहुँच ही नहीं पाते हैं। इस बीच किसी की तबियत खराब हो जाए तो अस्पताल तक पहुँचने का कोई साधन नहीं है। एम्बुलेंस तो दूर डॉक्टर भी मरीज तक नहीं पहुँच पाते, परेशानियाँ केवल जीते जी ही नहीं मरने के बाद भी पेश आती हैं, मुक्तिधाम नाला के इस पार है, इन  महीनों में किसी की मृत्यु हो जाए तो अन्तिम संस्कार का जतन करना टेढ़ी खीर बन जाती है। बरसात के दो महीने गरीब परिवारों के लिए दोहरी मार का कारण बनते हैं, एक तरफ  तो बाहर काम करने को जाने का रास्ता बंद दूसरी तरफ राशन केंद्र से राशन भी नहीं उठा पाते। मुहल्ले के निवासी जनक राम,चिन्ता राम,धरम सिंग ध्रुव, रवि साहू,दादू राम, हीरालाल,बिहारी, पाहरू साहू बताते हैं कि अन्य मौसम में नाले में बने स्टॉपडैम के रपटे या नाले के अंदर से अस्थायी कच्ची सड़क बनाकर आवागमन का जुगाड़ बनाया जाता है। पर यह जुगाड़ पहली बरसात में ही खत्म हो जाता है, नाला पर एक पक्का पुल इन सारी समस्याओं को जड़ से खत्म कर सकती है और इस बाबत शासन, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों का ध्यान कई बार दिलाया गया लेकिन अब तक परिणाम शून्य ही रहा है। बरात गई तो नाला सुखा था लोटे तो नाले में पानी दूल्हे दुल्हन को गोद में उठाकर नाला पार करना पड़ा। बेटी विदा करने की जद्दोजहद नाला पारा में रहने वाले रूपेश की प्रेम विवाह इसी महीने 20 जुलाई को बस्ती पारा की भारती से तय हुई। घर से दूल्हा के रूप में तैयार हुए रूपेश के लिए नाला पार करना सोनी-महिवाल और चनाब के कथानक के कुछ हिस्सों को जीवंत करने जैसा रहा। बहरहाल, सारे बाराती सूखे नाले से आसानी से  नाला पार कर उस पार पहुँचे। अब दुल्हन के घर सारे रस्मो-रिवाज के पूर्ण होने तक सारे घराती मिलकर भगवान से प्रार्थना करते रहे कि पानी न गिरे, वरना बेटी की विदाई जाने कितने दिनों के लिए अटक जाती।

जब मांगलिक कार्यक्रम पूर्ण हुए तो दूल्हा- जब दुल्हन लेकर घर लोटे तब तक बारिश हो चुकी थी और नाला में पानी भर जाने से दूल्हे गाड़ी नाला पार नहीं कर पाया और फिर बाराती दूल्हे और दुल्हन को गोद पर उठाकर नाला पार कराया तब दुल्हन अपनी ससुराल पहुंच पाई जो उनके जीवन के लिए एक यादगार पल तो बना पर सारी जीवन इस बात का मलाल भी रहेगा की उसे गोद पर उठाकर ससुराल पहुंचना पड़ा खैर समस्या तो बड़ी है पर इसे हल करना मुमकिन नहीं है जरूरत है तो बस इच्छा शक्ति का की इसे पूरा करना है देखते है की सरकार और प्रशासन जनप्रतिनिधि इस और कब ध्यान देते है और मल्लीन नाला पार बड़ा पुल कब बनता है।

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