मूर्ति या देवी नहीं…इस मंदिर में चट्टान की होती है पूजा, है ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर

मूर्ति या देवी नहीं…इस मंदिर में चट्टान की होती है पूजा, है ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर

रंकिनी मंदिर, जिसे कपड़गढ़ी घाट रंकिनी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. झारखंड के जामशेदपुर जिले के पोटका ब्लॉक के रोहिनिबेरा गांव में स्थित है. यह मंदिर हाता-जादूगोड़ा राज्य राजमार्ग के पास स्थित है. यहां देवी काली के भौतिक रूप के रूप में पूजा जाता है. प्राचीन समय में यात्रा करते समय लोग घने जंगलों में सुरक्षा और भलाई के लिए इस मंदिर में पूजा किया करते थे.

मंदिर की ये है खास विशेषता
रंकिनी मंदिर की स्थापना 1947-50 के बीच की गई थी. मंदिर की विशेषता यह है कि देवी रंकिनी एक पत्थर के रूप में विराजमान हैं, जिसे स्थानीय लोग “जीवित पत्थर” मानते हैं. यह पत्थर कपड़गढ़ी घाटी में स्थित है, जो मुख्य मंदिर के नीचे बहते नाले के पास है.

इस मंदिर की कहानी दिलचस्प है. कहा जाता है कि देवी रंकिनी ने स्थान्य आदमी दिनबंधु सिंह को एक सपने में दर्शन दिए. उन्हें बताया कि वह पत्थर के रूप में पूजी जा रही हैं. देवी ने दिनबंधु से कहा कि वह इस पत्थर की पूजा करें. एक ऐसा स्थान स्थापित करें. जहां लोग आसानी से आ सकें और उनकी पूजा कर सकें. दिनबंधु ने देवी के आदेश पर इस पत्थर को पूजा के लिए स्थापित किया. इसके बाद से इस स्थान पर पूजा-अर्चना की परंपरा शुरू हुई.

मां की दिव्य उपस्थिति का प्रमाण
दिनबंधु के बाद, उनके बेटे मनसिंह और फिर मनसिंह के बेटे बैद्यनाथ सिंह ने मंदिर का संचालन संभाला. आज भी उनका परिवार और उनकी बनाई गई ट्रस्ट मंदिर की देखभाल कर रही है. पूजा की जाने वाली पत्थर का आकार समय के साथ बढ़ता जा रहा है. जिसे लोग मां की दिव्य उपस्थिति का प्रमाण मानते हैं. रंकिनी मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है. यह स्थल श्रद्धालुओं के लिए आस्था और विश्वास का प्रतीक है. उनके लिए एक प्रेरणादायक स्थल बना हुआ है.

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