एकमात्र शिवालय जहां शिवलिंग के उपर नहीं है छत, जानें ताड़केश्वर मंदिर का इतिहास

एकमात्र शिवालय जहां शिवलिंग के उपर नहीं है छत, जानें ताड़केश्वर मंदिर का इतिहास

ताड़केश्वर महादेव मंदिर, गुजरात के वलसाड जिले में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो अपनी अनोखी वास्तुकला और शयनित शिवलिंग के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. इस मंदिर की खास बात यह है कि इसके ऊपर कोई छत नहीं है, और सूर्य की सीधी किरणें शिवलिंग पर पड़ती हैं. हर श्रावण माह में यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है, जो भक्तों के बीच एक महत्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र है.

ताड़केश्वर महादेव मंदिर का इतिहास
यह मंदिर वलसाड के अब्रामा गांव में वेंकी नदी के तट पर स्थित है और इसकी स्थापना लगभग 800 साल पहले हुई थी. मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक चरवाहा जंगल में अपनी गायों को चरा रहा था, जब उसने देखा कि उसकी गाय एक चट्टान पर अनायास दूध उगल रही है. यह दृश्य देखकर उसने ग्रामीणों को बुलाया, जिन्होंने उस स्थान की जांच की और एक बड़ी शिला पाई. इसके बाद, एक भक्त प्रतिदिन इस शिला पर दूध का अभिषेक करने लगा.

कहा जाता है कि शिवजी ने उस भक्त को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वे उसकी भक्ति से प्रसन्न हैं और उसे उस शिला को कीचड़ से निकालकर उचित स्थान पर स्थापित करने का निर्देश दिया. ग्रामीणों ने शिवलिंग की खुदाई शुरू की और बहुत सावधानी से इसे निकाला, जिससे 6 से 7 फीट लंबा शिवलिंग प्रकट हुआ. इस शिवलिंग को बैलगाड़ी में लादकर आज के स्थान पर लाया गया, जहां इसे स्थापित किया गया.

ताड़केश्वर महादेव नाम का उद्भव
स्थापना के बाद, शिवलिंग की सुरक्षा के लिए एक अस्थायी दीवार और घास की छत बनाई गई, लेकिन कुछ ही दिनों में वह छत जल गई. जब ग्रामीणों ने ट्यूबलर छत बनाने की कोशिश की, तो वह भी तूफान में उड़ गई. इसके बाद, एक भक्त को स्वप्न में शिवजी ने बताया कि वे “ताड़केश्वर” हैं और उनके सिर पर छत न बनाने का निर्देश दिया. इसके बाद, मंदिर को ऊपर से खुला छोड़ दिया गया, और शिवलिंग को ताड़केश्वर महादेव के नाम से पूजा जाने लगा.

वर्तमान स्वरूप और श्रद्धालु
1994 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया, जिसमें 20 फीट गोल गुंबद को खुला रखा गया. यह मंदिर स्वयंभू शिवलिंग के कारण बहुत प्रसिद्ध है, और यहां हर साल श्रावणमास और महाशिवरात्रि पर हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. श्रावण मास के दौरान, इस मंदिर में हर सोमवार को 10,000 से अधिक भक्त भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं, और यहां एक विशाल मेला भी लगता है.

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