मप्र में अधिकारियों और कर्मचारियों की व्यथा, 8 साल से नहीं मिली पदोन्नति

मप्र में अधिकारियों और कर्मचारियों की व्यथा, 8 साल से नहीं मिली पदोन्नति

भोपाल । मध्य प्रदेश में सवा आठ साल से पदोन्नति पर रोक से अधिकारी और कर्मचारी पहले से ही परेशान हैं और अब 8वें वेतन आयोग के गठन के आसार भी धूमिल हो रहे हैं। आयोग को वर्तमान स्थितियों का परीक्षण करने और वेतनमान की अनुशंसा करने में दो साल से अधिक का समय लगता है, पर अभी तक आयोग का ही गठन नहीं हुआ है। ये हालात तब हैं जब परंपरानुसार 1 जनवरी 2026 से 8वां वेतनमान देय हो जाएगा। यानी आयोग यदि गठित होता है तो उसके पास महंगाई दर के हिसाब से सरकार एवं कर्मचारी की स्थिति का परीक्षण कर वेतनमान की अनुशंसा करने के लिए अब सिर्फ सवा साल का समय शेष है। बता दें कि 7वां वेतनमान 1 जनवरी 2016 से लागू हुआ है और अभी तक प्रत्येक 10 साल में नया वेतनमान लागू किये जाने की परंपरा रही है।
वैसे भी केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसाएं केवल केंद्रीय कर्मचारियों के लिए होती हैं, लेकिन राज्यों के कर्मचारी संघर्ष कर वेतनमान सहित कुछ केंद्रीय अनुशंसाएं अपने लिए लागू कराने में सफल होते आए हैं। इसीलिए उन्हें केंद्रीय आयोग के गठन का इंतजार रहता है। मंत्रालय सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष इंजीनियर सुधीर नायक कहते हैं कि अभी तक हर केंद्रीय वेतन आयोग एक केंद्रीय विचार को लेकर चलता रहा है। पहले और दूसरे आयोग जीवन निर्वाह लायक वेतन सुनिश्चित करने का विचार लेकर चले। तीसरे वेतन आयोग ने आकर्षक वेतन देने का विचार अपनाया ताकि योग्य व्यक्तियों को शासकीय सेवा की ओर आकृष्ट किया जा सके। नायक कहते हैं कि पांचवें वेतन आयोग का सरकारी कर्मचारियों की संख्या कम करने पर फोकस था। उसने अमले में 30 प्रतिशत कटौती की अनुशंसा की थी। छठे वेतन आयोग ने वेतनमानों की अस्पष्टता और संख्या कम करने पर जोर दिया। पे-बैंड और ग्रेड वेतन की अवधारणा लागू की। पांचवें वेतन आयोग ने यह अनुशंसा भी की थी कि जब भी महंगाई भत्ता मूल वेतन का 50 प्रतिशत हो जाए तो उसे मूल वेतन में मर्ज कर दिया जाए। नायक बताते हैं कि पहला आयोग 1946 में गठित हुआ था तब से अब तक आयोग के गठन की परंपरा चली आ रही है। 77 साल में 07 आयोग गठित हो चुके हैं।
चर्चाएं ये भी हैं कि शायद नया वेतन आयोग गठित करने के बजाय सरकारें इसी फार्मूले पर चलने का विचार कर रही हैं। मध्य प्रदेश में जनवरी 2024 से देय 4त्न महंगाई भत्ता अभी नहीं दिया गया है। इसलिए फिलहाल महंगाई भत्ता 46त्न है। यही कारण है कि 50त्न महंगाई भत्ता मूल वेतन में मर्ज करने की मांग भी नहीं उठ पा रही है। मध्य प्रदेश के कर्मचारी वर्ष 1989 में पहली बार केंद्रीय वेतनमान लेने में सफल हुए थे जिसको 1986 से नोशनली लागू माना गया था। तभी से केंद्रीय वेतनमान मिलता आ रहा है। केंद्रीय वेतन आयोग गठित न होने से सभी राज्यों के कर्मचारियों में निराशा है परन्तु मध्य प्रदेश के कर्मचारियों की निराशा दोहरी है क्योंकि पदोन्नति भी नहीं मिल रही है और नया वेतनमान मिलने की उम्मीद भी नहीं दिख रही है।

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