अब रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करने वाले रहें सावधान, सरकार का ऐक्शन तेज; रेल मंत्री ने दिया पूरा हिसाब…

अब रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करने वाले रहें सावधान, सरकार का ऐक्शन तेज; रेल मंत्री ने दिया पूरा हिसाब…

रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करने वालों को सावधान हो जाने की जरूरत है।

केंद्र सरकार की ओर से इसे लेकर तेजी से कदम उठाए जा रहे हैं।

सरकार ने संसद में बताया है कि रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए कोई निश्चित समयसीमा बताना संभव नहीं है, क्योंकि ऐसे मामलों की जटिल प्रकृति है जिनमें कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अक्सर राज्य और स्थानीय प्रशासन के साथ संपर्क करना पड़ता है।

राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय ट्रांसपोर्टर अतिक्रमण हटाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है और 2018-19 और 2022-23 के बीच पांच वर्षों में कुल 33.67 हेक्टेयर भूमि को वापस ले लिया गया है।

कांग्रेस सांसद रजनी अशोकराव पाटिल ने मंत्री से पूछा था कि रेलवे की करीब 782.81 हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण से निपटने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? क्या सरकार स्थानीय निकायों और अधिकारियों के साथ मिलकर इस तरह के अतिक्रमण से निपटने के लिए सहयोग कर रही है, खासकर महानगरों में? पाटिल ने यह भी जानना चाहा था कि क्या सरकार ने अदालतों में लंबित अतिक्रमणों को छोड़कर सभी अतिक्रमणों को हटाने के लिए कोई समयसीमा तय की है? इसके जवाब में वैष्णव ने कहा, ‘रेलवे अतिक्रमणों की पहचान करने के लिए नियमित सर्वेक्षण करता है और उन्हें हटाने के लिए लगातार कार्रवाई करता है।

यदि झुग्गियों, झोपड़ियों और अवैध बस्तियों के रूप में अतिक्रमण अस्थायी प्रकृति के होते हैं तो उन्हें रेलवे सुरक्षा बल और स्थानीय सिविल प्राधिकारियों की सहायता से परामर्श करके हटाया जाता है।’

राज्य सरकार और पुलिस की सहायता से बेदखली
रेल मंत्री ने कहा, ‘पुराने अतिक्रमणों के लिए सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम, 1971 (पीपीई अधिनियम, 1971) के तहत समय-समय पर संशोधित कार्रवाई की जाती है। अनधिकृत कब्जेदारों की वास्तविक बेदखली राज्य सरकार और पुलिस की सहायता से की जाती है।

मंत्री के अनुसार रेलवे का लक्ष्य आखिरकार कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए अपनी भूमि और संपत्तियों पर सभी अतिक्रमण को हटाना है।

उन्होंने कहा, ‘अतिक्रमण के व्यक्तिगत मामलों की जटिल प्रकृति को देखते हुए इसके लिए एक विशिष्ट समयसीमा देना संभव नहीं है। ऐसे मामलों में अक्सर कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य और स्थानीय प्रशासन से निपटने की आवश्यकता होती है।’

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