इस समय के दौरान बिल्कुल भी ना करें पिंडदान, जानें कैसे मिलेगी पितरों को तृप्ति, क्या है ‘पंचक’ का समय?

इस समय के दौरान बिल्कुल भी ना करें पिंडदान, जानें कैसे मिलेगी पितरों को तृप्ति, क्या है ‘पंचक’ का समय?

हिंदू पंचाग के अनुसार इस बार पितृपक्ष भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा लगते ही प्रारंभ होने जा रहा है। ऐसे में हम सभी अपने पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने उनकी आत्मा को तृप्त कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. पितृपक्ष पक्ष कुला 15 दिनों की अवधि तक चलता है, इस दौरान लोग नियमित ठंग से अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से उनकी तृप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण के माध्यम से उनकों भोजन प्रदान करते हैं.

जिससे उनकी आत्मा को परम गति प्राप्त करने में सहायता मिलती है. ऐसे में यह 15 दिन पितरों को समर्पित होता है परंतु पितृपक्ष के इन 15 दिनों में यदि पंचक लग जाए तो उतने दिन तक पिंडदान और तर्पण जैसे काम को करना वर्जित माना जाता है. तो आइए हम आपको बताने जा रहे हैं आखिर पंचक में पिंडदान जैसे कर्मकांड क्यों नहीं किए जाते हैं और इस पितृपक्ष यह पंचक कब से कब तक रहेगा.

पंचक में क्यों नहीं करते है पिंडदान
पंचांग के अनुसार, इस बार भाद्रपद मास का पचंक 16 सितंबर दिन सोमवार को सुबह 5 बजकर 45 मिनट पर प्रारंभ होगा. 20 सितंबर को सुबह 5 बजकर 20 मिनट पर इसका समापन होगा. वहीं पितृपक्ष 17 सिंतबर से शुरू होने जा रहा है. पंचक काल के चलते 17 से 20 सिंतबर की प्रातः 5 बजकर 20 मिनट तक पिंडदान और श्राद्ध कर्म बंद रहेंगे. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पंचक के दौरान पितृपक्ष का कर्मकांड करना शुभ नहीं माना जाता है इसलिए 17 से 20 सितंबर तक श्राद्ध कर्मकांड पर विराम लगा रहेगा. उसके बाद ही आप अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण कर सकते हैं. इसके बीच यदि पितरों की पिंडदान करने की तिथि पड़ती है और पंचक के कारण आप उनका पिंडदान नहीं कर पाते हैं तो उसके लिए भाद्रपद की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्मकांड कर सकते हैं.

पितरों की तृप्ति के लिए किया जाता है श्राद्ध
आने वाले इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों को नदियों में सुबह तिल के साथ जल लेकर सूर्य की तरफ मुंह करके हाथों से जल तर्पण करते हैं और उनकी मृत्युतिथि पर पार्वण श्राद्ध करते हैं. श्राद्ध के दिनों में ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. पिता-माता और पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के बाद उनकी मुक्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहा जाता है.

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