छत्तीसगढ़ में है अनोखा मंदिर, जहां नवरात्रि में देवी की नहीं बल्कि परेतिन की होती है पूजा

छत्तीसगढ़ में है अनोखा मंदिर, जहां नवरात्रि में देवी की नहीं बल्कि परेतिन की होती है पूजा

रायपुर

यह अनोखा मंदिर छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के अर्जुन्दा नगर पंचायत से महज चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में परेतिन की पूजा होती है। एक ओर नवरात्रि में नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है। दूसरी ओर एक गांव में नौ दिनों तक परेतिन दाई की पूजा होती है। साथ ही 108 मनोकामना ज्योति कलश भी जलाया जाता है। यह मंदिर नवरात्रि पर आस्था का केंद्र बना हुआ है।
चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में परेतिन माता के दरबार में विशेष आयोजन किए जाते हैं। 108 मनोकामना ज्योति कलश स्थापना की जाती है। नवरात्र के नौ दिन बड़ी संख्या में भक्तों का तांता लगा रहता है। भले ही मान्यता अनूठी हो, लेकिन सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा और मान्यता आज भी इस गांव में कायम है।

भक्तों की लगती है तांता
भूत-प्रेत के नाम सुनते ही आम तौर पर लोग डर जाते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के एक गांव झिंका में परेतिन का मंदिर बनाया गया है, जहां उसकी पूजा की जाती है। नवरात्र में लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। जिन्हें परेतिन दाई के नाम से जाना जाता है। परेतिन दाई का नाम सुनकर लोग दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं और मनोकामना के लिए ज्योति कलश जलाते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, दूसरे-दूसरे जिले से भी मां की दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं।

यह है परेतिन दाई की कहानी
गांव की रहस्मय कहानी तब सामने आई जब अमर उजाला की टीम ने गांव के लोगों से बातचीत की। ग्रामीणों के अनुसार, कुछ सालों पहले जब मार्ग से होकर गुजरने वाले राहगीर इस स्थान को बिना प्रणाम किए यहां से गुजरते थे, तो उनके साथ कुछ ना कुछ अनहोनी या दुर्घटना हो जाती थी। तब से राहगीर इस स्थान पर रुककर वर्षों पुरानी नीम पेड़ को प्रणाम कर गुजरते हैं।
 
परेतिन दाई को चढ़ाते हैं भेंट
इसके साथ ही अपने पास रखें समान का कुछ अंश चढ़ा कर आगे बढ़ते थे। परिणामस्वरूप जिसके बाद अनहोनी होना बंद हो जाता था। ऐसे नहीं करने पर उस इंसान पर अनहोनी होना तय है। अब जो भी व्यक्ति इस जगह से होकर गुजरता है अपने गाड़ी का हॉर्न बजाकर या व्यापारी व्यवसाय से जुड़े सामग्री जैसे की दूध, सब्जी,ईटा, गिट्टी, रेत जैसे तमाम चीजों का कुछ अंश परेतिन दाई को भेंट करते हैं। इसके बाद ही वहां से आगे बढ़ते हैं।

'मनोकामना होती है पूरी'
गांव वालों ने बताया कि रात या दिन के समय नवजात बच्चा के रोने पर परेतिन माता को काला चूड़ी और काजल चढ़ाने से बच्चे का रोना शांत हो जाता है। इसके अलावा ग्रामीणों का मानना है कि जो भी निःसंतान दंपति सच्ची श्रद्धा से माता के चरणों में फूल अर्पित कर मन्नत मांगती है, तो माता उनकी झोली भर देती है। यानि कि दंपति को संतान प्राप्ति होती है। दोनों ही नवरात्र पर ग्रामीण नौ दिनों तक विधि विधान से पूजा-अर्चना कर मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित कर सुख शांति समृद्धि की कामना करते हैं।

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