केजरीवाल का खुद को बनिया कहना

केजरीवाल का खुद को बनिया कहना

दिल्ली में सत्ता वापसी की कवायद में जुटे अरविंद केजरीवाल जहां स्कीम के जरिए वोटरों को लुभा रहे हैं. वहीं जाति की बिसात बिछाने से भी नहीं चूक रहे हैं. चुनाव के आखिरी दौर में केजरीवाल ने फिर से खुद की जाति पर जोर दिया है. पिछले 7 दिन में अरविंद केजरीवाल ने 2 बार खुद को बनिया का बेटा कहा है.
प्रचार के दौरान सोमवार को अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि मैं बनिया का बेटा हूं और मुझे पता है कि स्कीम लागू करने के लिए कैसे पैसे का प्रबंध करना है?

बनिया शब्द पर केजरीवाल ने कब-कब दिया जोर?
2014 के दिसंबर में अरविंद केजरीवाल ने पहली बार खुद को बनिया का बेटा बताया था. उस वक्त बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल के गोत्र को लेकर पोस्टर लगवाए थे. 2022 में केजरीवाल ने पंजाब में खुद को बनिया का बेटा बताया था. अरविंद केजरीवाल ने यहां पर एक रैली में कहा था कि दिल्ली के बनिया मुझे वोट नहीं देते हैं. 2020 के दिल्ली चुनाव में भी केजरीवाल ने खुद को बनिया कहा था. इस चुनाव में व्यापारियों पर जीएसटी की मार को उन्होंने मुख्य मुद्दा बनाया था. 7 दिन पहले धोबी समाज को लेकर घोषणा करते वक्त भी अरविंद केजरीवाल ने खुद की जाति पर ज्यादा फोकस किया थासोमवार को भी उन्होंने खुद को बनिया करार दिया और कहा कि दिल्ली के लोग पैसों की चिंता न करें.

1. दिल्ली में वैश्य एक अहम फैक्टर
 जातिगत समीकरण के लिहाज से देखा जाए तो दिल्ली में वैश्य-बनिया चुनाव में अहम फैक्टर हैं. राष्ट्रीय राजधानी में वैश्य जाति की आबादी करीब 7 प्रतिशत है. चांदनी चौक और नई दिल्ली के इलाके में इस समुदाय का खासा दबदबा है. इन इलाकों में वैश्य-बनिया की आबादी करीब 20 फीसद है. दिल्ली के दंगल में बनिया समुदाय के दबदबे को पार्टियां भी स्वीकार करती है. इस बार बीजेपी ने कुल 68 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. इनमें से 17 प्रतिशत टिकट वैश्य समुदाय के लोगों को दिया है.  आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. पार्टी ने वैश्य समुदाय से आने वाले 9 नेताओं को टिकट दिया है. कांग्रेस ने इस समुदाय से आने वाले 7 नेताओं को टिकट दिया है.

2. वैश्य विधायकों का बढ़ता जनाधार
 सिर्फ समीकरण और टिकट पाने में ही नहीं, विधायकी जीतने में भी वैश्य समुदाय आगे है. सीएसडीएस के मुताबिक 2013 में दिल्ली के 70 में से 7 विधायक वैश्य समुदाय के थे, जो 2015 में बढ़कर 9 और 2020 में बढ़कर 11 हो गए. यह कुल विधायकों की संख्या का करीब 10 फीसद है. दिलचस्प बात है कि वैश्य समुदाय के नेता दोनों ही पार्टियों के सिंबल पर लगातार जीत रहे हैं. मसलन, 2015 में बीजेपी को 3 सीटों पर जीत मिली. इनमें से पार्टी के एक विधायक बिजेंद्र गुप्ता वैश्य समुदाय के थे. पार्टी ने बाद में गु्प्ता को नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किया.

3. सियासी अवधारण की लड़ाई में बढ़त
अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए कई बड़ी घोषणाएं की है. इनमें महिलाओं को सम्मान राशि के रूप में 2100 रुपए प्रतिमाह और छात्रों के लिए फ्री बस सेवा प्रमुख है. इसके अलावा पार्टी ने ऑटो चालक, धोबी और दलित समुदाय के लिए भी कई बड़ी घोषणाएं की है.
विपक्ष इन घोषणाओं को लेकर सवाल उठा रही है. कहा जा रहा है कि पहले से कर्ज में डूबी दिल्ली में ये योजनाएं कैसे लागू हो पाएगी. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक साल 2022 में दिल्ली पर करीब 15000 करोड़ का कर्ज था. 2025 में इस संख्या के बढ़ने की बात कही जा रही है. ऐसे में केजरीवाल के बनिया वाले बयान को इससे ध्यान हटाने के तौर पर देखा जा रहा है. केजरीवाल सियासी अवधारण की लड़ाई में बनिया शब्द का इस्तेमाल कर पैसे प्रबंध के मामले में खुद की क्रेडिबलिटी बनाने की कवायद कर रहे हैं.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 5 फरवरी को 70 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव प्रस्तावित है. दिल्ली में इस बार 6 राष्ट्रीय पार्टी मैदान में है. बिहार की 2 क्षेत्रीय पार्टी भी चुनाव लड़ रही है. हालांकि, मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच बताया जा रहा है.

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