चार साल बाद हटा झूठे रेप केस का कलंक, ससुर पर बहू ने लगाए थे आरोप

चार साल बाद हटा झूठे रेप केस का कलंक, ससुर पर बहू ने लगाए थे आरोप

इंदौर: महिला ने अपने 55 वर्षीय ससुर के खिलाफ झूठा बलात्कार का मामला दर्ज कराया था। यह मामला तब सामने आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के झूठे मामलों को 'कानूनी आतंकवाद' करार दिया है। इस घटना में बुजुर्ग व्यक्ति को निर्दोष साबित होने से पहले चार साल तक अदालती मामलों का सामना करना पड़ा। चार साल की लड़ाई के बाद ससुर पर लगा दाग धुल गया है।

घरेलू हिंसा के झूठे मामलों को कानूनी आतंकवाद बताया

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के झूठे मामलों को 'कानूनी आतंकवाद' बताया है। इसके बावजूद इन कानूनों का दुरुपयोग जारी है। इंदौर में 55 वर्षीय ससुर पर उसकी बहू ने बलात्कार का आरोप लगाया था। चार साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट ने उसे निर्दोष करार दिया। एक अन्य मामले में बिस्तर पर पड़ी 90 वर्षीय दादी पर भी दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाया गया। हाल ही में 28 वर्षीय नितिन नामक व्यक्ति ने दहेज प्रताड़ना के मामले से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। सुसाइड नोट में उसने दहेज कानून में बदलाव की मांग की है।

ससुराल वालों पर आरोप

2020 में भोपाल में एक युवक-युवती की शादी हुई। शादी के कुछ दिन बाद ही दोनों में झगड़ा होने लगा। पत्नी ने पति पर अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और सास, ससुर और ननद पर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाया। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने दुष्कर्म का आरोप हटाने का आदेश दिया। एक अन्य मामले में महिला के परिजनों ने उसकी 90 वर्षीय दादी सास पर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाया, जबकि वह सालों से बिस्तर पर थी। कोर्ट ने दादी का नाम हटाने का आदेश दिया। धार की युवती और इंदौर के युवक की शादी 2019 में हुई थी। तलाक और भरण-पोषण के मामले में पत्नी ने पति पर दुष्कर्म का आरोप लगाया। पति को 15 दिन जेल में बिताने पड़े। ये मामले बताते हैं कि किस तरह दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है। कई बार झूठे आरोप लगाकर निर्दोष लोगों को फंसाया जाता है। ऐसे मामलों से निपटने के लिए कानूनों में बदलाव की जरूरत है।

कानून का दुरुपयोग नहीं रुक रहा

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से जुड़े झूठे मामलों को कानूनी आतंकवाद बताया है। इसके बावजूद इन कानूनों का दुरुपयोग नहीं रुक रहा है। इससे पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट की चिंता के बावजूद स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।

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