शिवसेना- यूबीटी ने अपने मुखपत्र 'सामना' में बजट को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और बीजेपी सरकार पर जोरदार हमला बोला है. 'सामना' के संपादकीय में लिखा गया है कि निर्मला सीतारमण नामक महिला द्वारा पेश किए गए बजट पर भक्तों की तालियां अभी भी बज रही हैं. वह इस कदर खुश हैं कि मानो आम जनता और मध्यम वर्ग के घरों पर सोने के खपरैल चढ़ने वाले हैं. 12 लाख मिलने तक टैक्स में छूट मिलने से बीजेपी भक्त खुशी से उछल रहे हैं. देश में कितने लोग इनकम टैक्स भरते हैं? करीब साढ़े तीन करोड़ लोग. इनमें से दो करोड़ की आय सात लाख से कम है यानी उन्हें पहले ही छूट मिल चुकी है. डेढ़ करोड़ में से अधिकतम 80-85 लाख वेतन भोगी या नौकरी पेशा होंगे. उसमें 50 लाख लोगों की सैलरी करीब 12 लाख है तो फिर बचे कितने 60 लाख के करीब लोग, इसका मतलब है कि नई टैक्स प्रणाली से सिर्फ 60 लाख लोगों को फायदा होगा, लेकिन ढोल ऐसे पीटे जा रहे हैं कि 45 करोड़ लोगों को फायदा होगा.
'चुनाव की वजह से बिहार पर योजनाओं की बारिश'
मुखपत्र में कहा गया कि वहीं जब मोदी की कृपा से पकौड़े तल रहे शिक्षित बेरोजगारों को इससे कोई लाभ नहीं है तो ये ढिढोरा क्यों पीटा जा रहा है? बजट कोई असाधारण वगैरह नहीं है. यह एक साधारण कूवत की महिला द्वारा साधारण बुद्धि की सरकार के लिए तैयार किया गया राजनीतिक बजट है. दिल्ली में विधानसभा चुनाव है. उनके लिए मोदी-शाह पहले ही मुफ्त की रेवड़ियां बांट चुके हैं. बिहार में भी चुनाव सिर पर है, ऐसे में बिहार पर पैसों और योजनाओं की बारिश हुई है. 'सामना' में आगे कहा गया कि हमेशा की तरह यह बजट भी चुनावी है. यह कोई देश के लिए नहीं है. कहा जा रहा है कि यह बजट मध्यम वर्ग के लिए है. यह सरासर झूठ है. मोदी सरकार ने पहले महिला केंद्रित बजट पेश किया था, लेकिन आज भी देश की अधिकतर महिलाएं मुफ्त राशन के लिए लाइन में खड़ी हैं और यदि गोवा, महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश जैसे राज्य की 'लाडली बहनों' को हजार-पंद्रह सौ प्रतिमाह का लालच दिखाकर खुश किया जा रहा है तो क्या इसे महिला वर्ग का विकास कहा जाए.
पीएम मोदी पर बोला हमला
मुखपत्र में कहा गया कि मोदी ने किसान-उन्मुख बजट पेश करने का पराक्रम किया था, लेकिन जब से मोदी आए हैं, किसान कृषि उपज के न्यूनतम मूल्य के लिए भूख हड़ताल और आंदोलन पर हैं और आज भी पंजाब-हरियाणा में किसान भूख हड़ताल पर बैठे हैं. मोदी रोजगारोन्मुखी बजट लाए. मोदी हर साल दो करोड़ नौकरियां देने वाले थे, लेकिन सच्चाई तो यह है कि मोदी राज में नौकरियों का अकाल पड़ा है. बाजार में प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर बेचे जा रहे हैं. राज्यों में बेरोजगार सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और मोदी की पुलिस बेरोजगारों पर लाठीचार्ज कर रही है. आगे कहा गया कि मोदी का मंत्र है कि नौकरी नहीं है तो पकौड़े तलो. अब मोदी ने मध्यम वर्ग आदि को दिलासा देने के लिए जलेबी दार बजट पेश किया है इसलिए मध्यम वर्ग को सावधान रहना चाहिए. ये लोग शहद लगी छुरी से गला काटने में माहिर हैं. ऐसा लगता है कि इस बजट में बिहार के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, लेकिन बिहार के नेताओं को यह दावा स्वीकार नहीं है. आज भी बिहार के अधिकतर लोग मजदूरी के लिए बाहरी राज्यों में जाते हैं. बीजेपी नेता रमेश बिधूड़ी ने प्रचार में सार्वजनिक रूप से कहा कि दिल्ली के बिहारियों को भगा दो. यह बिहार में रोजगार की गंभीर समस्या का नतीजा है.
गुजरात के साथ स्पेशल व्यवहार
'सामना' में कहा गया कि विकास और पैसे के मामले में अन्य राज्यों को वैसा व्यवहार नहीं मिल रहा है जो मौजूदा वक्त में गुजरात को मिल रहा है. जहां तक बिहार की बात है तो मोदी के समर्थन के बाद से बिहार को एक साल में 60 हजार करोड़ का आर्थिक पैकेज मिला, लेकिन विकास पर 60 करोड़ भी खर्च नहीं हुए तो इन 60 हजार करोड़ का क्या हुआ? ये पैसा कहां गया? देश की 500 सबसे बड़ी कंपनियों का मुनाफा 25 फीसद बढ़ा, लेकिन नौकरियां केवल 1.5 फीसद बढ़ीं. यह इस बात का संकेत नहीं है कि कोई अर्थव्यवस्था मजबूत है. जब से ट्रंप अमेरिका की सत्ता में वापस आए हैं, तब से वह भारत को वित्तीय संकट में डालने की कोशिश कर रहे हैं. ट्रंप प्रशासन अमेरिका से 1.7 लाख भारतीयों को वापस लाने पर अड़ा हुआ है और भारतीय अर्थव्यवस्था में संकट की आशंका है. देश में काला धन और नकली नोट बड़े पैमाने पर है. बजट में उसका कोई समाधान नहीं है, लेकिन 12 लाख की आयकर छूट की घोषणा कर यह सरकार लोकप्रिय होने की कोशिश कर रही है.