भारतीय ज्ञान को सहेजने के लिए पुनः शोध-अनुसंधान के साथ दस्तावेजकरण करने की आवश्यकता : उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार…

भारतीय ज्ञान को सहेजने के लिए पुनः शोध-अनुसंधान के साथ दस्तावेजकरण करने की आवश्यकता : उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार…

भोपाल: भारत की शिक्षा विश्व मंच पर सर्वश्रेष्ठ शिक्षा थी, इसलिए भारत विश्वगुरु की संज्ञा से सुशोभित था। विश्व भर के लोग, भारत में शिक्षा ग्रहण एवं अध्ययन करने आते थे। हमारे पूर्वज शिक्षित और ज्ञानवान थे लेकिन अतीत के कालखंडों में विदेशी इतिहासकारों द्वारा भारतीय इतिहास का गलत चित्रण किया गया।

इस ऐतिहासिक छल से मुक्त होने के लिए स्वत्व के भाव की जागृति के साथ, भारतीय ज्ञान परम्परा का अध्ययन करने की आवश्यकता है। भारतीय ज्ञान, परम्परा एवं मान्यता के रूप में भारतीय समाज में सर्वत्र विद्यमान है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर, भारतीय समाज में परंपराएं एवं मान्यताएं स्थापित हुई हैं।

भारतीय समाज, विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक दृष्टिकोणधारक समाज है। हर विधा-हर क्षेत्र में विद्यमान भारतीय ज्ञान को युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में वर्तमान वैश्विक आवश्यकतानुरूप, पुनः शोध एवं अनुसंधान कर दस्तावेजीकरण करने की आवश्यकता है। यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार ने शनिवार को भोपाल स्थित सरोजिनी नायडू शासकीय कन्या स्नातकोत्तर (स्वशासी) महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव “भव्या 2024-25” के समापन समारोह और “एक भारत-श्रेष्ठ भारत : सांस्कृतिक मेला कार्निवल” में सम्मिलित होकर कही।

उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने कहा कि विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को पुरातन भारतीय ज्ञान को, पुनः शोध-अनुसंधान एवं अध्ययन के साथ युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में दस्तावेजीकरण से समृद्ध करने के लिए सहभागिता करने की आवश्यकता है। श्री परमार ने कहा कि स्वतंत्रता के लिए जनजातीय नायकों ने अपना बलिदान दिया, उनके शौर्य एवं पराक्रम पर गर्व करने का भाव जागृत करना होगा।

श्री परमार ने कहा कि जिस तरह राष्ट्रपति के नेतृत्व में भारत विश्वमंच पर विकास की नई गाथा लिख रहा है, उसी तरह महाविद्यालय की बेटियों के नेतृत्व में यह महाविद्यालय भी अभिप्रेरक एवं आदर्श संस्थान बनने की ओर अग्रसर है। यह संस्थान बेटियों को लेकर विभिन्न सामाजिक अवधारणाओं को परिवर्तित करने का केंद्र बनेगा।

संस्थान में जनजातीय शोध केंद्र में बेटियों द्वारा सृजित चित्रकला सराहनीय है। श्री परमार ने कहा कि शिक्षा के मंदिरों में सरस्वती पूजन की परम्परा, मातृशक्ति के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास के भाव की अभिव्यक्ति है। विश्व भर में भारत एक मात्र देश है, जहां चरित्र निर्माण का कारखाना है और यह उपक्रम हमारे शिक्षा के मंदिर है। मंत्री श्री परमार ने विद्यार्थी बेटियों को “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” की शुभकामनाएं भी प्रेषित की।

उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने महाविद्यालय में स्थापित “जनजातीय शोध केंद्र” का शुभांरभ कर, “जनजातीय जीवन संस्कृति एवं जीवन शैली” पर आधारित महाविद्यालय की बेटियों द्वारा सृजित विविध कलाकृतियों का अवलोकन किया। इस दौरान महाविद्यालय में “विद्यार्थी सुविधा केंद्र” का भी शुभारंभ किया।

मंत्री श्री परमार ने “एक भारत-श्रेष्ठ भारत” थीम पर आधारित सांस्कृतिक मेले में, भारत के विभिन्न प्रांतो की सांस्कृतिक विशेषताओं को प्रदर्शित करते विभिन्न प्रांतों के व्यंजन, सजावट के सामान एवं कपड़े आदि के लगाए गए विभिन्न स्टॉलों का अवलोकन कर, बेटियों का मनोबलवर्धन किया।

मंत्री श्री परमार ने महाविद्यालय द्वारा सृजित “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफार्म” विषयक ऐप का डिजिटल शुभारम्भ किया। श्री परमार ने महाविद्यालय द्वारा प्रकाशित वामिका महिला सशक्तिकरण प्रकोष्ठ की शोध पत्रिका “वामिका”, महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका “वाणी” एवं भारतीय ज्ञान परम्परा के संदर्भ में गणित विषय पर आधारित पुस्तक सहित आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (कृत्रिम बुद्धि) से संबंधित पुस्तक का विमोचन भी किया।

श्री चेतस सुखाड़िया ने कहा कि भारत के गौरवशाली अतीत से लेकर वर्तमान तक, राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं का योगदान एवं भूमिका अग्रणी है। श्री सुखाड़िया ने कहा कि शिक्षा के मंदिरों में विद्यार्थी एवं शिक्षक दो महत्वपूर्ण प्रतिमाएं हैं, इनके मध्य संवाद की महती आवश्यकता है। शिक्षण परिसर के परिवेश को परिवर्तित करने की आवश्यकता है, इसके लिए परिसरों में विद्यार्थी समाधान केंद्र का सृजन करना होगा।

विद्यार्थी जीवन का मात्र सफल होना नहीं बल्कि सार्थक होना भी अत्यावश्यक एवं महत्वपूर्ण है। संस्थान में आनंद का परिवेश बनाकर, विद्यार्थियों के जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने की आवश्यकता है। महाविद्यालय की जनभागीदारी समिति की अध्यक्ष डॉ. भारती कुम्भारे सातनकर ने कहा कि बच्चों के अभिभावक ही उनके भविष्य को आकर देते हैं। परिवार की इस सभ्यता एवं संस्कृति को संरक्षित करने की आवश्यकता है।

डॉ. भारती ने कहा कि यह कार्यक्रम अपने नाम के अनुरूप सांस्कृतिक विशेषताओं को प्रदर्शित करते हुए भव्यता का दर्शन करा रहा है। उन्होंने महाविद्यालय की बेटियों को “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” की शुभकामनाएं भी दीं। सांस्कृतिक कार्निवल मेले में भारत के विभिन्न प्रांतो की सांस्कृतिक विशेषताओं को प्रस्तुत करते हुये 100 से अधिक छात्राओं के 18 समूहों ने सहभागिता की।

कार्निवल मेले में प्रथम स्थान बिहार, द्वितीय स्थान पश्चिम बंगाल एवं तृतीय स्थान मराठा समूह को प्राप्त हुआ। मेले में विविध तरह की खेल प्रतियोगिता भी आयोजित की गई, इसमें महाविद्यालय के प्राध्यापकों, छात्राओं एवं अतिथियों ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की। महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. दीप्ति श्रीवास्तव ने संस्थान का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया एवं कार्यक्रम की संयोजक डॉ. नीना श्रीवास्तव ने आभार माना। महाविद्यालय के प्राध्यापक, अधिकारी-कर्मचारीगण एवं विद्यार्थी बेटियां उपस्थित थीं।

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